September 13, 2010

पीपली लाइव - भारत की वास्तविकता को दर्शाती एक शानदार फिल्म

पीपली लाइव अनुषा रिज़वी द्वारा लिखित एवं निर्देशित फिल्म है जो भारतीय किसानों की दुर्दशा एवं आत्महत्या पर एक हास्यपद व्यंग है.फिल्म के मुख्य किरदार नत्था को सरकार का क़र्ज़ ना चुकाने पर अपनी ज़मीन खो बैठने का डर है.गरीबी से लाचार और स्थानीय राजनेताओं की बेपरवाही से मजबूर हो कर नत्था आत्महत्या करने का फैसला करता है. उसे यकीन है कि उसके मरणोपरांत उसके परिवार को सरकार से एक लाख रुपये मुआवज़ा अवश्य मिलेगा जो उसके परिवार के काम आएगा.नत्था के आत्महत्या के विचार की बात स्थानीय समाचारपत्र में प्रकाशित होती है और आग की तरह राज्य-एवं केंद्र सरकार तक फैल जाती है. स्थानीय चुनाव करीब हैं और हर पार्टी इस मुद्दे को अपने हित के लिए इस्तमाल करना चाहती है.फिल्म में मीडिया अपने "टी आर पी"बड़ाने के लिए नत्था का कैसे उपयोग करती है बखूबी दर्शाया गया है. पूरी फिल्म में सबके सामने प्रश्न यह है कि नत्था आत्महत्या करेगा या नहीं.



पीपली लाइव में कई अनगिनत ऐसे दृश्य हैं जो दर्शक को भारतीय किसानों की आर्थिक अर्थव्यवस्था और लाचारी पर सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं. एक ऐसा दृश्य जब नत्था अपने भाई के साथ बैठ कर आत्महत्या करने पर विचार करता है.यह एक बहुत ही दर्दनिय दृश्य है क्योंकि यह एक किसान की बेबसी,लाचारी और निराशा को दर्शाता है.एक दूसरा दृश्य जब नत्था का बेटा अपने पिता से पूछता है "बाबा कब आत्महत्या करोगे?"ताकि वह एक लाख रुपये से अपने पुलिसवाला बनने का सपना पूरा कर सके. केंद्रीय- राज्य एवं स्थानीय सरकार की किसानों के प्रति उपेक्षा और स्वार्थ भावना कई दृश्यों में दिखाया गया है. नत्था को हैंडपंप और टीवि भेंट करना जो उसके किसी काम के नहीं है और एक सजावट के सामान की तरह उसके घर में पड़े रहते हैं. सरकार का "नत्था कार्ड" योजना लागू करने पर विचार, जो उन किसानों के लिए है जो आत्महत्या करना चाहते हैं. मीडिया अपने "टी आर पी" बड़ाने की दौड़ में मक्खियों की तरह नत्था के गाँव पहुँचती है और तरह-तरह के सवाल नत्था के परिवार और गांववालों से पूछती है - "नत्था अपनी जान देने वाला है, आपको कैसा लग रहा है?" " आप नत्था के बचपन की कुछ बातें बताएं."  "आप नत्था के साथ खेलते थे, अंडा खाते थे पर जब वह आत्महत्या कर लेगा तब आप अंडा किसके साथ खायेंगे."

इस फिल्म को देखकर सरकार पर क्रोध आता है और किसानों के साथ सद्भावना होती है. पर प्रश्न यह है कि क्या सरकार अपना स्वार्थ भूलकर अपने किसानों के लिए वाकिय में कुछ करेगी? जिस देश में एक तरफ सरकार "इकोनोमिक बूम" का नारा लगाती है उसी देश में दूसरी तरफ किसान अपनी गरीबी और सरकार की लापरवाही  से मजबूर हो कर आत्महत्या कर लेते हैं. अच्छी योजनायों की कमी नहीं है पर भ्रष्टाचार के कारण उनका पूर्ण तरह लागू होना संभव नहीं हो पता. जिस देश के राजनेता स्वार्थी और भ्रष्टाचारी हों उस देश की नींव खोकली ही रहेगी. देश में आए दिन कई सरकार के भ्रष्टाचार के मामले सामने आते हैं. पिछले ही दिनों भारतीय रैल्वैय्स का पाँच हज़ार करोड़ का घोटाले का पता चला. करोड़ो रुपये के घोटाले ना कर के अगर नेता यही पैसा  आम जनता पर खर्च करे - स्कूल, हॉस्पिटल, बिजली, पानी, घर, पक्की सडकें आदि बनवाये - तो किसान आत्महत्या नहीं करेंगे, लोग अपने घर-बार छोड़ कर शहरों की तरफ पलायन नहीं करेंगे.  गोदामों में अनाज सड़ रहा है, चूहे उन्हें खा रहे हैं पर सरकार गरीबों में अनाज बाटने से कतराती है. आएदिन लोग भूखमरी से मरते हैं और हमारी सरकार अपने ही देशवासियों के लिए गोदामों से अनाज नहीं निकलवा सकती.

लोगों का अपनी सरकार के प्रति विश्वास तभी आएगा जब सरकार सिर्फ अच्छी योजनाओं का ऐलान ना करके उनको सही तरीके से लागू भी करेगी. सरकार जनता द्वारा बनाई जाती है,जनता के लिए बनाई जाती है. जिस देश में किसान आत्महत्या करते हों और बच्चे भुखमरी से मरते हों, उस देश में "इकोनोमिक बूम" जैसे शब्द खोखले सुनाई पड़ते हैं. हाल ही में भारत के आई टी मंत्री सचिन पैलेट ने अपने चुनावी-क्षेत्र में मोबाइल फ़ोन बाटे जाने पर कहा " यह बी एस एन अल की तरफ से बहुत ही अच्छा कदम है. यह गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को टेलिकॉम रेवोलुशन से जोड़ेगा". यह बात कहना जिनको खाने के लाले पड़ते हैं, उनकी गरीबी पर भद्दा मज़ाक है.











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