महेंगा प्याज़ रुलाता है
फीकी लगती है दाल सब्जी
प्याज़ के पकोड़े सपनों में आते हैं
तरस गए एक प्याज को
जीना हो गया है मुश्किल।
गुस्सा आता है देख लाल टमाटर
आसमान के भाव छूते हैं उसके दाम
टमाटर का सूप था कितना स्वादिष्ट
बुट्टर चिक्केन मैं थे कितने टमाटर - लाल...लाल !
कैसे खाए अंडे हर सन्डे के सन्डे
उबला नहीं, किसी तरह का नहीं
कोई अंडा नहीं।
जेब खाली हो रही है
मेहेंगाई जा नहीं रही
फ्रिज खाली दीखता है
मेहमान आते हैं
सिर्फ पीने को मिलता है।
फ़ोन पर सिर्फ मेहेंगाई की बातें
इ मेल, ब्लोगिंग सिर्फ मेहेंगाई पर
सपने मेहेंगाई के, जीवन मेहेंगाई का।
हाय रे मेहेंगाई!
करू मैं जादू टोना
और तू भाग जा
टमाटर खाना है
प्याज खाना है
खाने का स्वाद वापिस लाना है
जा गायब हो जा
हमारा दरवाज़ा फिर मत खटखटाना।
January 11, 2011
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1 comment:
हाँ मेहेंगाई, गायब हो जा! वापस मत आ जा! गौरी को मत रुला!
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