January 5, 2010

यहाँ सिर्फ चाय मिलती है

रामू का बचपन से एक ही सपना था - अपनी एक चाय की दुकान खोलना. ऐसा नहीं था कि रामू पढने में कमज़ोर था पर पता नहीं क्यों उस पर चाय वाला बनने का भूत सवार था. एक बड़े शहर जाना और वहाँ एक अपनी आलीशान-सी चाय की दुकान खोलना. उसके दोस्तों को उसके इस सपने के बारे में पता था और उसका काफी मजाक भी उड़ाया जाता था. पर रामू को दुनिया की कोई भी ताकत उसके सपना पूरा होने से रोक नहीं सकती थी.
रामू ने अपनी स्कूल तथा कॉलेज की पढ़ाई खत्म की. अब आई नौकरी करने की बारी. तो एक दिन रामू अपने माता-पिता को बिना बताए साहूकार के पास गया ओर कुछ पैसे उधार लिए और शहर की ओर निकल पड़ा. रामू बहुत ही खुश था. आँखों के सामने उसकी चाय की दुकान घूम रही थी. बड़ी-सी आलीशान दुकान. लोगों की एक लम्बी-सी कतार उसकी दुकान के सामने. रामू को सांस लेने की भी फुर्सत नहीं.
हमारी कहानी का मुख्य किरदार रामू शहर पहुंचा. कहीं रहने का ठिकाना ढूंडा और दूसरे दिन एक अच्छी-सी जगह जहाँ दुकान खोल सके देखने निकल गया. तीन-चार दिन की बहुत खोज के बाद एक जगह मिल ही गयी. आलिशान दफ्तरों की इमारतों के सामने एक छोटी-सी जगह दिखी. अच्छी जगह थी रामू ने सोचा. लोग दफ्तरों से बाहर आएंगे और सामने ही उसकी चाय की दुकान होगी. बिना चाय पिए घर नहीं जाएंगे. काम के बीच में भी चाय पीने के लिए आएंगे. बस उसका धंदा अब कभी नहीं बंद हो सकता.

रामू ने दिन-रात लग कर चार दिन में एक छोटी-सी (आलीशान नहीं जिस तरह रामू ने सोचा था) चाय की दुकान खड़ी कर दी. और दुकान का नाम रखा "यहाँ सिर्फ चाय मिलती है." वाह क्या नाम है रामू ने सोचा. और क्यों न हो चाय बेचने का उसका सपना अब हकीकत में जो बदल रहा था.
पेहला दिन काम का. दुकान खोली और लक्ष्मी की पूजा की. चाय बनाने को रखी और बेसब्री से अपने पेहेले ग्राहक का इंतज़ार करने लग गया. सुबह से दोपहर हो गयी पर कोई नहीं आया. कुछ और इंतजार करने के बाद रामू को एक महिला उसकी दुकान की तरफ आती हुई दिखी. महिला आकर उसकी दुकान के सामने रुक गई और दुकान के भीतर झाँक-झाँक कर देखने लगी. रामू को आश्चर्य हुआ और पूछा, " क्या आपको चाय पीनी है?'
"चाय तो पीनी है पर क्या कुछ और नहीं है?' महिला ने कहा.
"क्या मतलब?"
"मेरा मतलब है कि चाय के साथ समोसे, पकोड़े, नमकीन ये सब नहीं बेचते क्या".
"नहीं बहन जी. यहाँ सिर्फ चाय मिलती है. कहिए तो आपके लिए चाय बना दूं."
"नहीं रहने दो. सिर्फ चाय पीकर क्या करुँगी. पकोड़े भी खाने का मन कर रहा है." कह कर महिला लौट पड़ी.
"अरे बहन जी रुकिए" रामू चिल्लाया "चाय यहाँ से पी लीजिए और पकोड़े कहीं और से खा लेना". पर महिला ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. रामू को आया गुस्सा. बड़ी अजीब औरत है. पकोड़े के बिना भी तो चाय पी सकते हैं. जब मुझे चाय ही बेचनी है तो पकोड़े क्यों बेचूं. फिर बैठ गया ग्राहक के इंतज़ार में. जब तक रामू का गुस्सा ठंडा होता तब तक एक और ग्राहक उसे दिख गया. क्या सूट-बूट पहना हुआ था. सीधा दफ्तर की ईमारत से निकलता हुआ आ रहा था. रामू के चहरे पर आई मुस्कान. साहब पहुंचे रामू की दुकान पर. दुकान को गौर से देखा. रामू ने नमस्ते कहा और पूछा, "जी कहिए कौन-सी स्पेशल चाय बनाऊँ - शाहरुख़ स्पेशल या सलमान स्पेशल. काजोल और ऐश्वर्या स्पेशल भी है. आपका मूड ठीक करने की भी चाय है मेरे पास."
"अबे चुप. मेरा मूड ठीक करेगा ! मेरी प्रोमोशन रोक दी. कैसे मेरा मूड ठीक होगा. चाय की सिवाए कुछ और नहीं बेचते हो क्या. ठंडा ?"
"माफ़ कीजिए साहब जी. मेरी दुकान में सिर्फ और सिर्फ चाय मिलती है. मेरा बचपन से सपना रहा है चाय बेचने का. मैंने अपने माता-पिता को भी नहीं बताया की में शहर में चाय बेच रहा हूँ. अगर बता दूं ..............."
"बस चुप.  चाय कौन पीयेगा". कह कर सूट-बूट वाले साहब दफ्तर की ओर चल पड़े.
"अरे साहब जी रुकिए तो. सुनिए तो." रामू चिल्लाया पर बहुत देर को चुकी थी. बड़ा अजीब शहर है रामू ने गुस्से से सोचा. कोई सिर्फ चाय पीता ही नहीं है. सिर्फ एक प्याली चाय पी लेंगे तो कौन-सा पहाड़ टूट जाएगा. रामू ने अपनी दुकान को गौर से देखा और सोचा - छोटी है तो क्या हुआ. चाय तो मैं बढ़िया बनता हूँ. एक-दो ग्राहक ऐसे आ गए तो क्या सब ऐसे थोड़े ही होते हैं. रामू ने अपने आपको सांत्वना दी.

शाम हो गई और एक पैसा भी रामू ने आज नहीं कमाया. दफ्तर से लोग भी लग-भग जा चुके थे. वह बहुत ही उदास हो गया. दुकान बंद करने का वक़्त आ गया. अपनी दुकान अभी समेंट ही रहा था कि एक सज्जन आए. रामू खुश हो गया " नमस्ते साहब. कहिए तो शाहरुख़ स्पेशल बनाऊं क्या?"
"क्या शाहरुख़ स्पेशल?"
"हाँ साहब जी. मेरे पास सलमान, काजोल और ऐश्वर्या स्पेशल भी है".
" अरे बड़े अजीब चाय वाले हो. एक सीधी-साधी चाय को इतने बड़े कलाकारों के नाम दे दिये. तुम्हारी शाहरुख़ और सलमान स्पेशल में कोई फर्क भी नहीं होगा. और वैसे भी मैं शाहरुख़ का बहुत बड़ा फैन हूँ और तुम उसके नाम पर एक सादी-सी चाय बेच रहे हो ! शर्म नहीं आती तुम्हें!! दुकान बंद करवा दूंगा तुम्हारी. जाओ नहीं चाहिए तुम्हारी चाय."
"अरे गुस्सा क्यों होते हैं साहब. शाहरुख़ स्पेशल नहीं तो सलमान स्पेशल पी लीजिए."
"क्या कहा! मैं शाहरुख़ का फैन हो कर  सलमान स्पेशल पिऊँगा?!  तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है!" सज्जन जी गुस्से में चले गए. और इस बार रामू ने उन्हें पीछे से बुलाया भी नहीं. 

"हाय रे मेरी किस्मत. कहाँ आ गया मैं. हे भगवान् मुझे बचाओ!" रामू ने रोते हुए कहा.
"रामू" एक आवाज़ आई.
"हाँ कौन?" रामू ने चकित हो कर पूछा. उससे आस-पास कोई नहीं दिखा.
"रामू मैं भगवान् हूँ."
"भगवान्?" रामू फिर से आवाज़ सुन कर भोचक्का रह गया. डरती हुई आवाज़ में कहा "हे भगवान् अब इस शहर में भूत भी रहते हैं"
"नहीं रामू इस शहर में भूत नहीं रहते. मैं भगवान् बोल रहा हूँ. तुम्हारी सहायता करने ही आया हूँ".
 रामू को बिलकुल यकीन तो नहीं हुआ पर उसने डरते-डरते पूछा, "आप किस प्रकार से मेरी सहायता करेंगे?"
भगवान् ने कहा, "तुम अपनी दुकान का नाम बदल दो. उसका नया नाम रखो "यहाँ चाय और बहुत कुछ मिलता है. चाय के साथ पकोड़े, समोसे, नमकीन, कोका कोला, फैंटा जैसी चीज़े भी बेचो. इससे तुम्हारा कारोबार बढेगा."
"पर मुझे सिर्फ और सिर्फ चाय ही बैचनी है. मैं क्यों अपने और पैसे खर्च करके दूसरा सामान खरीदूं. जिसको सिर्फ चाय पीनी होगी वो आएगा."
"पर रामू ग्राहक की ज़रूरतों के हिसाब से ही कारोबार चलाना चाहिए."
"मुझे परेशान मत करो. अपने-आप को भगवान् कह कर मुझे बुद्धू बना रहे हो! जो भी हो चले जाओ यहाँ से!"
"जैसी तुम्हारी मर्ज़ी". कह कर भगवान् चले गए.
रामू को आया ज़बरदस्त गुस्सा - सब अपने आपको क्या समझते हैं. उसने लिया पेंट और ब्रुश और अपनी दुकान का नाम बदल दिया. उसकी दुकान का नया नाम था - "यहाँ सिर्फ और सिर्फ चाय मिलती है, और कुछ नहीं". 
अब आप खुद सोच सकते हैं कि हमारे प्यारे रामू के सपने का क्या हुआ होगा.                                                                                                                    











                                                                                                             
                                                                      
                     

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